Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge | श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय पर आधारित पाण्डित्य-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय पर आधारित पाण्डित्य-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण | Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
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श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय पर आधारित पाण्डित्य-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

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1. पहले मै कभी नहीं था। (न त्वेवाहं जातु)

2. भविष्य में कभी नहीं होऊंगा। (न चैव न भविष्यामः)

3. आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थित रहता है। (तथा देहान्तरप्राप्तिः)

4. इन्द्रिय और उनके विषय-संयोग अनित्य है। (आगमापायिनोऽनित्या)

5. और दुख दोनों को एकसमान मानता हूं। (समदुखसुखं धीरं)

6. शरीर का कभी भाव नहीं है। (नासतो विद्यते भावो)

7. आत्मा का कभी अभाव नही है। (नाभावो विद्यते सतः)

8. सभी शरीर अन्तवाले हैं। (अन्तवन्त इमे देहा)

9. आत्मा न किसी को मारता है,न मारा जाता है। (नायं हन्ति न हन्यते)

10. आत्मा अजन्मा व अव्यय है। (य एनमजमव्ययम्)

11. पुराने वस्त्रों के समान शरीर भी बदले जाते हैं। (शरीराणि विहाय जीर्णा)

12. आत्मा सर्वव्यापी, स्थिर समभाव है। (स्थाणुरचलोऽयं)

13. शरीर का बारम्बार जन्म-मृत्यु होती रहती है। (नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्)

14. उत्पन्न वस्तु का नाश निश्चित है। (जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु)

15. आदि और अन्त मे शरीर अव्यक्त रहता है। (अव्यक्तादीनि भूतानि)

16. आत्मा के यथार्थ स्वरूप को नहीं जानता हूं। (वेद न चैव कश्चित)

17. अपने धर्म को देखकर घबराता नहीं हूँ। (स्वधर्ममपि चावेक्ष्य)

18. अकीर्ति मृत्यु से भी बढकर है। (चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते)

19. मरकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है। (हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं)

20. सुख-दुःख,लाभहानि,जयपराजय को एक समान मानता हूँ। (सुखदुःख समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ)

21. निश्चय हीन मनुष्यों की बुद्धियां अनन्त होती है। (बहु शाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽयवसायिनाम्)