Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge | श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय पर आधारित समबुद्धि / विषम बुद्धि-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय पर आधारित समबुद्धि / विषम बुद्धि-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण | Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय पर आधारित समबुद्धि / विषम बुद्धि-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

Enter Membership ID to Begin test.

Welcome to your श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय पर आधारित समबुद्धि / विषम बुद्धि-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

Name

1. मान-अपमान में समान रहता हूँ। (मानापमानयोः)

2. कूटस्थ हूँ। (कूटस्थो)

3. मिट्टी,पत्थर तथा सुवर्ण को समान समझता हूँ। (समलोष्टाश्मकांचनः)

4. मित्र-शत्रु को एक समान नहीं मानता हूँ। (सुह्रन्मित्रार्युदासीन)

5. साधु और पापियों को समान मानता हूँ। (साधुष्वपि च पापेषु )

6. इन्द्रियों सहित शरीर को वश में रखने वाला हूँ। (यतचित्तात्मा)

7. आशा रहित हूँ। (निराशीः)

8. संग्रह रहित हूँ। (अपरिग्रहः)

9. अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करता हूँ। (योगमात्मविशुद्धये)

10. काया,सिर,गले को अचल रूप से धारण करता हूँ। (समं कायशिरोग्रीवं)

11. ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित हूँ। (ब्रह्मचारिव्रते)

12. भयरहित हूँ। (विगतभी)

13. भगवत्-परायण होकर रहता हूँ। (मच्चित्तो युक्त)

14. शान्त अन्तःकरण से युक्त हूँ। (प्रशान्तात्मा)

15. युक्त आहार-विहार वाला हूँ। (युक्ताहारविहारस्य)

16. कर्मों में युक्त चेष्टावाला हूँ। (युक्तचेष्टस्य कर्मसु)

17. सभी भोगों से स्पृहा रहित हूँ। (निःस्पॄहः)

18. अपने आप में संतुष्ट रहता हूँ। (आत्मनि तुष्यति)

19. सब प्राणियों में आत्मा को देखता हूँ। (सर्वभूतस्थमात्मानं)

20. सब प्राणियो को आत्मा में देखता हूँ। (सर्वभूतानि चात्मानि)

21. एकत्व भाव में स्थित रहता हूँ। (भजत्येकत्वमास्थितः)

22. सुख और दुःख को एक समान देखता है। (सुखं वा यदि वा दुःखं)

23. मन को रोकना कठिन मानता हूं। (चंचलं हि मनः)