Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge | वैदिक-व्यक्तित्व-विश्लेषण-पद्धति वैदिक-व्यक्तित्व-विश्लेषण-पद्धति | Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

वैदिक-व्यक्तित्व-विश्लेषण-पद्धति

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1. मैं दूसरों से स्पष्ट व्यवहार करता हूँ।

2. मेरी ब्रह्म-जिज्ञासा में न्यूनतम रूचि है।

3. मैं अपने जीवन से सन्तुष्ट हूँ।

4. भोजन में मुझे फ़लाहार एव शाक (सब्जियाँ) अधिक प्रिय हैं।

5. मैं मानता हूँ सभी प्राणी मूल रूप से ब्रह्म-रूप हैं।

6. मैं अपने व्यवहार में ऋषि-मेधा को प्रामाणिक नहीं मानता।

7. मैं सामान्यतः क्रिया करते हुए भविष्यकालिक परिणामों को ध्यान में नहीं रखता।

8. मैं जीवन को समग्रता (सम्पूर्णता) से जीना चाहता हूँ।

9. मैं प्राप्त भौतिक वस्तुओं की उपलब्धि से सन्तुष्ट हूँ।

10. मैं उद्देश्य प्राप्ति के लिए इच्छा-शक्ति का प्रयोग करने में समर्थ हूँ।

11. मैं अपना समय गोष्ठियों में व्यतीत करना सुखद मानता हूँ।

12. स्वच्छता मेरे लिए अत्यन्त मह्त्त्वपूर्ण है।

13. दूसरे मेरी बुद्धि को तीक्ष्ण/ तीव्र/ सूक्ष्म कहते हैं।

14. मैं सामान्यतः अवसादग्रस्त/ हताश/ निराश रहता हूँ।

15. मैं अपने कर्त्तव्यों के निर्वाह में समय-प्रतिबद्ध नहीं हूँ।

16. मैं भौतिक सम्पन्नता युक्त व्यक्तियों से अत्यन्त प्रभावित हूँ।

17. वार्तालाप/ चर्चा/ सम्वाद में मैं दूसरों को वाक् से आहत नहीं करता।

18. मैं मानता हूँ कि शरीर की मृत्यु होने पर जीवन भी समाप्त हो जाता है।

19. मैं सामान्यतः असहाय अनुभव करता हूँ।

20. मुझे तीव्र गन्ध एवम् रस वाला भोजन रुचिकर लगता है।

21. समाज में अपने सम्मान से निरन्तर असन्तुष्ट हूँ।

22. भौतिक पदार्थों की उपलब्धि मेरे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

23. जब परिस्थितियाँ कठिन होती हैं तो मैं सामान्यतः उदासीन हो जाता हूँ।

24. मैं सामान्यतः अपने को परपीडित/ हीन समझता हूँ।

25. मैं अनुभव करता हूँ कि मैं निरन्तर ज्ञानवृद्ध हो रहा हूँ।

26. मैं सामान्यतः वनभ्रमण की अपेक्षा जनपद में भ्रमण श्रेयस्कर समझता हूँ।

27. काम मेरे जीवन के सुख का मुख्य स्रोत है।

28. अपना कार्य करते हुए मैं सदा नैतिक नियमों(ऋत एवम् सत्य) से प्रेरणा लेता हूँ।

29. मुझे मदिरा,चाय,काफ़ी,कोल्ड-ड्रिंक्स आदि उत्तेजना प्रदान करने वाले पेय पदार्थ प्रिय हैं।

30. मैं सामान्यतः लोभी स्वभाव (लोलुपः) वाला हूँ।

31. जब परिस्थितियाँ मेरे अनुकूल नहीं होतीं तो मैं सामान्यतः विषादग्रस्त होता हूँ।

32. मैं सामान्यतः क्रोधित होता हूँ।

33. मैं सामान्यतः भयग्रस्तता अनुभव करता हूँ।

34. मैं अपने कर्त्तव्यों/ उत्तरदायित्त्वों के प्रति संदेहग्रस्त नहीं हूँ।

35. मैं सामान्यतः भावुक हूँ।

36. मुझे माँसाहार प्रिय है।

37. मेरा विश्वास है कि मैं सामान्यतः आत्मसंयमी हूँ।

38. मैं अति-कर्त्तव्यपरायण हूँ।

39. मैं सामान्यतः दान अनिच्छापूर्वक देता हूँ।

40. आत्मज्ञान मेरे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नहीं है।

41. मैं सामान्यतः दुःखी एवम् अवसादग्रस्त रहता हूँ।

42. मैं अपने कर्मों को फ़लप्राप्ति की अपेक्षा से नहीं करता।

43. मैं सामान्यतः पारिवारिक उत्तरदायित्त्वों के प्रति नियमबद्ध नहीं हूँ।

44. मैं सामान्यतः आसानी से दुःख-सुख से प्रभावित होता हूँ।

45. मैं परनिन्दा करता हूँ।

46. अधिकाधिक भौतिस्स्क वस्तुओं को प्राप्त करने की मेरी अदम्य इच्छा है।

47. मैं अपने वर्तमानकाल में अपने रोग(शारीरिक या मानसिक) या स्वभाव से संघर्ष कर रहा हूँ।

48. मैं दूसरों से ईर्ष्या करता हूँ।

49. मेरी वृत्ति/ आजीविका मेरे तनाव का कारण है।

50. मैं सरल जीवन की प्राप्ति के लिए अपने सुख-साधन एवम् सम्पत्ति को त्यागने का कभी विचार नहीं करता।

51. मेरे लिए सामान्यतः वह वस्तुएँ जो मेरे सुख का साधन होती हैं वे परिणामतः मेरे दुःख का हेतु बन जाती हैं।

52. मैं मानसिक रूप से कभी कभी अस्वस्थ अनुभव करता हूँ।

53. मेरे में इच्छा-शक्ति की कमी है।

54. मैं सामान्यतः मित्र सङ्ग में अपने उत्तरदायित्वों की उपेक्षा कर देता हूँ।

55. मैं सामान्यतः अन्यों के प्रति हिंसक/ आक्रामक/ उत्तेजक व्यवहार करता हूँ।

56. मैं अपनी बुद्धि एवम् भावनाओं पर नियन्त्रण रखने में कुशल हूँ।

57. मैं ऋषि-जीवन का पर्याप्त रूप से स्वेच्छा से पालन एवम् अनुगमन करता हूँ।

58. मुझ में दूसरों को मूर्ख समझने की प्रवृत्ति है।

59. सामान्यतः मैं दूसरों के व्यवहार को हेय दृष्टि से देखता हूँ।

60. मैं देवोपासना में विश्वास करता हूँ।

61. मैं सभी कर्म यज्ञ-भावना से करता हूँ।

62. मैं अत्यन्त सङ्ग्रहशील हूँ।