Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge | श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्दश अध्याय पर आधारित गुणातीत-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्दश अध्याय पर आधारित गुणातीत-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण | Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
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श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्दश अध्याय पर आधारित गुणातीत-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

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1. तीन गुण प्रकृति से उत्पन्न है। (प्रकृतिसम्भवाः)

2. जीवात्मा को शरीर से बांध देते हैं। (निबध्नाति)

3. सत्त्व गुण निर्मल होता है। (निर्मलत्वात्)

4. सत्त्वगुण सुख-सम्बन्ध से अभिमान रूप में बाँधता है। (सुखसंगेन)

5. रजोगुण कामना एवं आसक्ति से उत्पन्न है। (रागात्मकं)

6. रजोगुण कर्म-फ़ल से बाँधता है। (कर्मसंगेन देहिनम्)

7. तमोगुण अज्ञान से उत्पन्न है। (अज्ञानजम्)

8. तमोगुण सभी को मोह में डालता है। (मोहनम्)

9. तमोगुण प्रमाद देता है। (प्रमादा)

10. तमोगुण आलस्य देता है। (आलस्य)

11. निद्रा देता है। (निद्रा)

12. मनुष्य रजोगुण व तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुणी बन जाता है। (सत्त्वं )

13. सत्त्व और तम को दबाकर रजोगुणी बन जाता है। (रजः)

14. सत्त्व और रज को दबाकर तमोगुणी बन जाता है। (तमः)

15. सत्त्वगुण से ज्ञान उपजता है। (ज्ञानम्)

16. रजोगुण से लोभ,अशान्ति,इच्छा उत्पन्न होते हैं। (रजसि)

17. तमोगुण से अप्रवृत्ति,प्रमाद,मोह उत्पन्न होते हैं। (तमसि)

18. गुणों से भिन्न कर्ता को नहीं देखता हूँ। (कर्तारम्)

19. त्रिगुणों से हटकर जन्म,जरा,मृत्यु आदि से मुक्त हो जाता है। (विमुक्तः)

20. उदासीन के समान स्थित हूँ। (उदासीनवत्)

21. गुणों से चलायमान नहीं हूँ। (न विचालयते)

22. अपने आपमें स्थित हूँ। (समलोष्ट)

23. मिट्टि, सोने को समान देखता हूँ। (अश्मकाञ्चन)

24. प्रिय व अप्रिय तुल्य हैं। (तुल्यप्रियाप्रियः)

25. निन्दा और स्तुति तुल्य है। (तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः)

26. मित्र व शत्रु का पक्ष तुल्य है। (मित्रारिपक्षयोः)

27. सारे धन्धों का परित्यागी है। (सर्वारम्भपरित्यागी)