Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge | श्रीमद्भगवद्गीता के तृतीय अध्याय पर आधारित सकाम-वृत्ति कर्मी व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के तृतीय अध्याय पर आधारित सकाम-वृत्ति कर्मी व्यक्तित्व परीक्षण | Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

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Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

श्रीमद्भगवद्गीता के तृतीय अध्याय पर आधारित सकाम-वृत्ति कर्मी व्यक्तित्व परीक्षण


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1. कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ है। (चेत्कर्मणस्ते)

2. कर्म का आरम्भ ही नहीं करता हूँ। (कर्मणाम् अनारम्भात्)

3. निष्कर्म भाव को भोगता हूँ। (नैष्कर्म्यम्)

4. कर्मों के त्यागमात्र से सिद्धि को प्राप्त नहीं करता हूँ। (संन्यसनादेव)

5. क्षणभर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। (क्षणमपि)

6. प्रकृति के गुणों से विवश होकर कर्म करता हूँ। (कार्यते ह्यवशः कर्म)

7. मन से इन्द्रियो के विषयों का स्मरण करता रहता हूँ। (मनसा स्मरन्)

8. आसक्तिरहित होकर कर्म करता हूँ। (कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः)

9. यज्ञ के लिए कर्म नहीं करता हूँ। (यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र)

10. यज्ञ करके इच्छित भोग प्राप्त करता हूँ। (प्रसविष्यध्वमेष)

11. यज्ञ कर्म से देवताओं को उन्नत करता हूँ। (देवान्भावयतानेन)

12. निःस्वार्थ-भाव से एक दूसरे को उन्नत करे। (परस्परं भवयन्तः श्रेयः)

13. देवों की आराधना से इच्छित भोगों को प्राप्त करता हूँ। (इष्टान्भोगान्हि)

14. देवार्पण किए बिना ही भोग भोगता हूँ। (तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो)

15. अपने शरीर का पोषण करता हूँ। (ये पचन्त्यात्मकारणात्)

16. कर्म ब्रह्म से उत्पन्न होता है। (कर्म ब्रह्मोद्भवं)

17. भोगों में रमण करता हूँ। (इन्द्रियारामः)

18. केवल कर्तव्य कर्म करता हूँ। (सततं कार्यं कर्म)

19. श्रेष्ठ आचरण युक्त कर्म करता हूँ। (यद्यदाचरति श्रेष्ठः)

20. लोगों की भलाई चाहते हुए कर्म करता हूँ। (चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम्)

21. योगयुक्त होकर कर्म करता हूँ। (जोषयेत्सर्वकर्माणि)

22. अल्पज्ञ मनुष्यो को चलायमान नहीं करता हूँ। (मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्)

23. आशा,ममता और संताप रहित होकर कर्म करता हूँ। (निराशीनिर्ममो भूत्वा)

24. ईश्वर-समर्पित होकर कर्म करता हूँ। (मयि सर्वाणि कर्माणि)

25. रागद्वेष युक्त होकर कर्म करता हूँ। (रागद्वेषौ व्यवस्थितौ)