Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge | श्रीमद्भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय पर आधारित शरीर /शरीरी-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय पर आधारित शरीर /शरीरी-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण | Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
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श्रीमद्भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय पर आधारित शरीर /शरीरी-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

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1. शरीर क्षेत्र है। (शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते)

2. क्षेत्र को जानने वाला क्षेत्रज्ञ कहा जाता है। (एतद्यो वेति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ)

3. अध्यात्म ज्ञान में नित्य स्थिति रखता हूँ। (अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं)

4. तत्त्वज्ञान के अर्थ का दर्शन करता हूँ। (तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्)

5. ज्ञेय हूँ। (ज्ञेयं)

6. सत् और असत् दोनों से परे हूँ। (सत्तन्नासदुच्यते)

7. इन्द्रियों के गुणों के द्वारा भासमान हूँ। (सर्वेन्द्रियगुणाभासं)

8. इन्द्रियों से रहित हूँ। (सर्वेन्द्रियविवर्जितम्)

9. गुणों का भोक्ता हूँ। (गुणभोक्तृ च)

10. अचर हूँ। (अचरं)

11. चर हूँ। (चरमेव)

12. प्रकृति और पुरुष अनादि हैं। (विद्धयनादी)

13. रागद्वेषादि विकार प्रक्रुति से उत्पन्न हैं। (विकारांश्च)

14. त्रिगुणात्मक सभी पदार्थ प्रकृति से उत्पन्न हैं। (गुणांश्चैव)

15. सबके ह्रदय में स्थित हूँ। (ह्रदि सर्वस्य विष्ठितम्)

16. प्रकृति से उत्पन्न गुणो को भोगता हूँ। (भुंक्ते प्रकृतिजान्गुणान्)

17. अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेता हूँ। (सदसद्योनिजन्मसु)

18. उपद्रष्टा हूँ। (उपद्रष्टा)

19. अनुमन्ता हूँ। (अनुमन्ता)

20. भर्ता हूँ। (भर्ता)

21. भोक्ता हूँ। (भोक्ता)