Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge | श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय पर आधारित विषाद-वृत्ति परीक्षण श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय पर आधारित विषाद-वृत्ति परीक्षण | Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
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श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय पर आधारित विषाद-वृत्ति परीक्षण

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1. मेरे अंग ढीले होते जाते हैं। (सीदन्ति मम गात्राणि)

2. मुख सूख जाता है। (मुखम् च परिशुष्यति)

3. शरीर में कंपन होने लगता है। (वेपथुः च शरीरे)

4. रोम खडे हो जाते हैं। (रोमहर्षः च जायते)

5. त्वचा जलने लगती है।(त्वक् च एव परिदह्यते)

6. भ्रमित सा हो जाता हूँ। (भ्रमति इव च मे मनः)

7. मैं खडा नहीं रह पाता हूँ। (न च शक्नोमि अवस्थातुम्)

8. स्वार्थपूर्वक विजय नहीं चाहता हूँ। (न कांक्षे विजयम्)

9. अन्यायपूर्ण राज्य लाभ की इच्छा नहीं। ( न च राज्यम्)

10. जीने की इच्छा भी नहीं। (किम् भोगैः जीवितेन वा)

11. कुल-क्षय दोष है। (कुलक्षयकृतम् दोषम्)

12. कुल नाश से सनातन धर्म नष्ट हो जाता है। (कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः)

13. सारा कुल अधर्मी हो जाता है। (अधर्मः अभिभवति उत)

14. कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं। (प्रदूष्यन्ति कुलस्त्रियः)

15. स्त्रियो के दूषित होने पर वर्ण संकर उत्पन्न होते हैं। (जायते वर्णसंकरः)

16. मरणशील शरीरों के लिए शोक करता हूं। (गतासून्)

17. अविनाशी आत्माओं के लिए शोक नहीं करता हूं। (अगतासूंश्च)

18. गुरुजनो को नहीं मार सकता। (गुरूनहत्वा)

19. लोक में भीख का अन्न खाना अच्छा है। (श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके)

20. रुधिर से सने हुए भोगों को भोगना प्रिय नहीं है। (भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्)

21. धर्म के विषय में मोहित हो गया हूं। (धर्मसंमूढचेताः)

22. कायरता से मेरा स्वभाव दब गया है। (कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः)

23. शोक इन्द्रियों को सुखा डालता है। (यच्छोक्स्मुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्)

24. सम्बन्धियों को मारकर जीना नहीं चाहता हूं। (यानेव हत्वा न जिजीविषाम्)