Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

आज (20/04/2018) सनातन धर्म मानव विकास शोध एवम् प्रशिक्षण केन्द्र तथा संस्कृत विभाग, सनातन धर्म कालेज, अम्बाला छावनी में “आदिगुरू शंकराचार्य की जयन्ती” के उपलक्ष्य में विद्वद्चर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें डॉ. आशुतोष आंगिरस ने बताया कि आचार्य शंकर ज्ञान को अद्वैत-ज्ञान की परम साधना मानते हैं, क्योंकि ज्ञान समस्त कर्मों को जलाकर भस्म कर देता है, तथा केवल निष्काम कर्म और निष्काम उपासना द्वारा व्यक्ति अपनी सभी प्रकार के द्वन्द्वों का अन्त कर सकता है। इसलिये व्यक्ति को इस सत्य को जानकर ईश्वर के प्रति समर्पित रहते हुये अपना कर्म करना चाहिये। कार्यक्रम में डॉ. गौरव शर्मा ने कहा कि आचार्य शंकर ने बुद्धि, भाव और कर्म इन तीनों के संतुलन पर ज़ोर दिया है। आज व्यक्ति की समस्या है कि वह धर्म को जानता हुआ भी, धर्म के अनुसार आचरण नहीं करता है। आचार्य शंकर ने ऐसे व्यक्ति को पशु के समान बताया है। ‘भज गोविन्दम’ में बाहरी रूप-स्वरूप को नकारते हुए वे कहते हैं कि “जो संसार को देखते हुए भी नहीं देखता है, उसने अपना पेट भरने के लिए तरह-तरह के वस्त्र धारण किए हुए हैं।” वह मनुष्य होकर भी पशु के समान है। कार्यक्रम में डॉ. जय प्रकाश, अनील मित्तल तथा विद्यार्थियों ने उपस्थित होकर इस जयन्ती में इस चर्चा रुपी यज्ञ में अपना सहयोग किया । विद्वचर्चा के निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि वैदान्तिक साधना ही समग्र साधना है।