Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

वेदव्यास संस्कृत की पुनःसंरचना योजना के अधीन, संस्कृत, विभाग एवम् स० ध० म० वि० शो० एवम् प्र० केन्द्र  द्वारा  * “ Critique of levels & dimensions of “dialogue” in Sanskrit, Western & Arabic traditions of knowledge , संस्कृत, पाश्चात्य एवम् अरबी ज्ञान-परम्पराओं में सम्वाद” के स्तर एवम् वैविध्य की मीमांसा” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता श्री बलभद्र देव थापर जी ने  की और श्री नवनीत,सुश्री अंकिता आदि ने प्रतिभागिता की। कार्यक्रम के आरम्भ में पावर पाईंट के माध्यम से विषय की अनिवार्यता और अपर्याप्तता पर चर्चा करते हुए स्पष्ट किया गया कि सम्वाद के अभाव में समाज के व्यक्तित्व में विघटन उत्पन्न हो रहा है, एक पीढी दूसरी पीढी से कुछ भी सम्प्रेषण नहीं कर पा रही है जबकि सम्प्रेषण के साधन पहले से अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं। लेकिन बात करने योग्य बातों का अभाव समाज में दिखाई पड रहा है जिससे समाज और व्यक्ति के व्यवहार में सम्वेदनहीनता, अवसाद, अनावश्यक सूचना से ज्ञानाभास, उत्तेजना आदि प्रकट हो रही हैं। इस अवसर पर उपनिषदों में एक ऋषि का दूसरे ऋषि के साथ सम्वाद, गुरु का शिष्य के साथ सम्वाद और उसके स्तर की , दिशा की चर्चा की गई। यह सम्वाद परम्परा पुराणों में बहुत स्पष्ट रूप में स्थापित हुई बल्कि सम्वाद की पूरी संस्कृति भारतीयता की पहचान बन गई। यही सम्वाद संस्कृति आगे बुद्ध और उनके शिष्यों में और महावीर जैन और उनके शिष्यों में बहुत सुन्दर सारगर्भित रूप में दृष्टिगोचर होती हुई भक्ति काल तक दिखाई देती है। दूसरी ओर सम्वाद की परम्परा ग्रीक दार्शनिकों  सुकरात, प्लेटॊ आदि से होती हुई यूरोप के पुनर्जारण में बहुत स्पष्ट रूप से दिखई देती है जब्अकि बीच में चर्च के प्रभाव में सम्वाद परम्परा कुछ अवरुद्ध भी हो गई थी। रुचिकर बात यह है कि क्राईस्ट के बाईबल स्वयं सम्वाद शैली में लिखे गए हैं। इसके अतिरिक्त सळ्क्षिपत चर्चा चीन कि सम्वाद परम्परा पर भी की गई\ लेकिन अफ्रीकन एवम् अरब सम्वाद पर्म्परा के सूत्रों को खोजने में संस्कृत विभाग सफल नहीं रहा। इसके अतिरिक्त सम्वाद के तीन स्तरों पर चर्चा हुई – उत्तरजीविता सम्वाद स्तर, दार्शनिक-वैज्ञानिक सम्वाद स्तर, साहित्यिक सम्वाद स्तर। इस सम्वाद को जो न तो संसद की बहस की तरह है और न ही टी वी की बहस की तरह है , ऐसे उस सम्वाद को पिता- पुत्र मे, शिक्षक- विद्यार्थी में, व्यक्ति- व्यक्ति में पुनर्जाग्रत करने की सघन आवश्यकता सभी प्रतिभागियों ने अनुभव की।

सादर
आशुतोष आंगिरस

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