Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

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सराबोां का सफ़र (शायरी सांग्रह ) – डा० नफ़स अम्बालवी हलााँवक उदूग अदब के उभरने का जो वि था उस समय इस मुल्क के वसयासी हालात वर्रते जा रहे थे और उदूग शायरी के ऊांचे दजे के शायरोां में भी एक बेकसी और बेबसी की उदासी और परेशानी शायरी का वहस्सा बनी हु ई थी लेवकन नए जमाने के उदूग शायरोां में उस बेकसी के मज़ार से बाहर वनकलने का बहुत बडा चैलेंज कबूल वकया। वहांदी विल्ोां की उदूग शायरी में सावहर लुवधयानवी जैसे लोर्ोां ने उदूग शायरी के एक नए सांघषग या जद्दोजहद की जमीन तैयार की वजसमें से नए इांकलाब के उर्ने के बीज भी मौजूद थे वजससे होने वाली िसल के वनशान हमें नफ़स अम्बालवी की शायरी में नजर आते हैं – “उधर चराग़ बुझाने को है हवा बेताब इधर ये वज़द वक हवा में जल के देखते हैं” मेरी नज़र में यह शेर शायर के एहसास का वह वहस्सा है जो वसिग जीने की वजद पर अडा हु आ नही ां है बन्तल्क आर्े बढ़कर के लडना भी जानता है। शायरी की उडान वदल से शुरू होती है या वदमार् से, यह बात एक अरसे से समझने का मुद्दा रही है । ख़्य ाल कै से खुलता है या मौसीवक में कै से छोटा ख्य ाल या बडा ख्य ाल बन जाता है – यह जाने वबना शायरी और सांर्ीत का मज़ा या लुत्फ़ नही ां उठाया जा सकता। देसी र् ु लाब का िूल कही ां न्त खलता है तो पहली बार तो शायद आम आदमी को वह अपनी खुशबू और रू प रांर् से अपनी ओर खीांचता है पर जब आदमी उस पर रीझ जाए तो विर उसके वलए आदमी के वदल में प्य ार उमडता है और वदमार् उसकी बनावट पर हैरान भी होता है। मुझे लर्ता है वक सही उदूग शायरी का अन्दाज़ कु छ ऐसा ही है। नफ़स अम्बालवी की शायरी का रहस भी कु छ इसी तरह से उनकी वकताब “सराबोां का सफ़र” में खुलता है। सूरज की तपती लौ में जलते रेवर्स्ान के सफ़र शायर की अपनी ज़ाती वजन्दर्ी और दुवनयादारी के तज़ुबे का कािी र् हरा एहसास है। “नफ़स” लफ़्ज़ वजसका एक प्र योर् जायसी के पद्मावत में बुन्तदद (तावकग क बुन्ति ) के अथग में वमलता है ऐसे उस बुन्ति से “सराब” यावन मृर्मरीवचका (भ्रान्ति ) को खूबसूरती से सम्भालते हु ए नफ़स अम्बालवी शायरी की दुवनया के वलए एक वमसाल पेश करते हैं – इसमें कोई दो राय नही ां। मैं उनका तहे वदल शुवक्रया अदा करता हाँ वक वदमार्ी मसरूवफ़यतोां के दौर में उन्होने ने मुझे अपनी शायरी के बहाने एक बार वफ़र ख्य ालोां , ख्व ाबोां और अहसासोां की दुवनया से रू बरू होने का मौका वदया। मैं उनके इस कामयाब सिर के एहसास को अपने लोर्ोां के साथ शायरी के जररए साांझा करने के मौके पर स्व ार्त भी करता हां और आर्े इस सिर को ऐसे ही जारी रखने के वलए शुभकामनाएां भी पेश करता हाँ।