Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

Haryana Higher Education -Condition

आज संस्कृत विभाग तथा सनातन धर्म मानव विकास शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र, एस डी कालेज अम्बाला छावनी द्वारा “हरियाणा उच्च शिक्षा -दशा, दिशा एवं दर्शन, Haryana Higher Education -Condition, Direction & Vision” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया । परिचर्चा में डॉ. गौरव, डॉ. जोगिन्द्र, डॉ. सरयू, डा श्यामनाथ झा, डॉ. सरजीवन, डॉ. जयप्रकाश, श्री अनिल, प्रो मीनाक्षी और प्रिंस, आशीष आदि छात्रों ने भाग लिया । परिचर्चा के आरम्भ में हरियाणा उच्च शिक्षा विभाग के द्वारा दिये गये उद्देश्यों और नियोग-कार्य (मिशन) को छात्रों द्वारा पढ़ा गया तथा उन मुख्य बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की गई तथा यह निष्कर्ष निकाला गया, कि उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा प्रदत्त उद्देश्यों और नियोग-कार्य का वर्तमान में न तो कोई प्रयोग हो रहा है, और न ही प्रयोग किये जाने की सम्भावना दिखाई दे रही है। परिचर्चा में छात्रों द्वारा संस्कृत-शास्त्रों पर आधारित 11 प्रश्नों को लेकर किये गये सर्वेक्षण निष्कर्षों को प्रस्तुत किया गया । जिसमें मुख्य रूप से प्रिंस और आशीष संस्कृत के छात्रों की भूमिका प्रमुख रही । यह सर्वेक्षण छात्रों, अध्यापकों तथा सामान्य जनों पर किया गया जिसमें 47 महिलायें तथा 82 पुरुषों के उत्तरों को सर्वेक्षण के निष्कर्ष के रूप में ग्रहण किया गया। सर्वेक्षण के निष्कर्ष से यह स्पष्ट हुआ कि सभी प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक हैं। इससे शिक्षा की स्थिति बहुत असमंजस पूर्ण हो गई, जिससे उच्चत्तर शिक्षा के व्यवहार और महाविद्यालयों में शिक्षा परक व्यवहार का परस्पर सम्बन्ध नहीं बैठ रहा। उच्च शिक्षा की दशा, दिशा और दर्शन में यह स्पष्ट हुआ कि इसमें विद्यार्थी और शिक्षक गौण हैं और उच्च शिक्षा तन्त्र को चलाने वाले अधिक हावी है, जिसके कारण विद्यार्थियों और शिक्षकों का आपसी संवाद बाधित हो रहा है। शिक्षा जो हमें मंगल और रचनात्मकता की ओर अग्रसर करती है, और हमारे व्यक्तित्व की छिपी हुई प्रतिभाओं का विकास करती है, वह शिक्षा प्रणाली इस उदासीन और नियन्त्रित व्यवस्था के कारण दयनीय दशा को प्राप्त हो रही । इसका प्रभाव यह हो रहा है, कि आज विद्यार्थी उच्च शिक्षा को पाकर भी असहाय, अशक्त और दैन्यभाव से ग्रसित हो रहे हैं। उच्चत्तर शिक्षा में शिक्षकों की भारी कमी और वर्तमान शिक्षकों पर महाविद्यालयों, प्राचार्यों तथा प्रबन्धकों का नियन्त्रित व्यवहार शिक्षा और शैक्षिक विषयों पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। तत्पश्चात् परिचर्चा में एक अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु पर विचार किया गया कि उच्चत्तर शिक्षा विभाग द्वारा कुछ शैक्षिक विषयों के प्रति मनमाना व्यवहार किया जा रहा है, जिससे छात्रों में और शिक्षकों में भारी रोष और उत्साहहीनता का वातावरण उत्पन्न हो रहा है। चर्चा के अन्त में सभी विद्वानों से उच्चतर शिक्षा विभाग की इन नीतियों को व्यवहार में लाने के लिये सुझाव दिये गये ।
सादर
आशुतोष आंगिरस