Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

परिचर्चा सार

वेदव्यास संस्कृत की पुन:संरचना योजना के अधीन संस्कृत विभाग तथा सनातन धर्म मानव विकास शोध एवम् प्रशिक्षण केन्द्र, एस डी कालेज अम्बाला द्वारा CRITIQUE OF APPLICATIONS OF SANSKRIT-SHAASTRAS संस्कृत-शास्त्रों के प्रयोगपरक व्यवहार की मीमांसा विषय पर विद्वद्चर्चा व कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. सोमेश्वर दत्त (निदेशक, हरियाणा संस्कृत आकादमी, पञ्चकूला) अध्यक्ष के रूप में और डा विष्णुदत्त, प्राचार्य, संस्कृत कालेज, मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे । विद्वद्चर्चा में डॉ. श्यामनाथ झा, डा राजेन्द्रा, डॉ. राजेश, डॉ. पीयूष, डॉ. ज्योत्सना, डॉ. जोगिन्द्र सिंह, डॉ. मीनाक्षी, डॉ. गौरव शर्मा, श्री अनिल, श्री उमाशंकर तथा प्रिन्स आदि अन्य विद्वानों व विद्यार्थियों (23) ने अपने-अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में निन्मलिखित बिन्दुओं पर विचार किया गया ।
१. प्रारम्भिक स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक संस्कृत छात्रों की जनसंख्या वृद्धि हेतु चर्चा ।
२. संस्कृत में अन्तर्निहित भूगोलविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, वास्तुविज्ञान, राजनीति विज्ञान आदि विषयों से समाज को लाभान्वित किया जाये। उसके लिए सक्षम प्रयास।
३. संस्कृत को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा दिलवाने हेतु प्रयास करें। जिससे संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में सम्पूर्ण विश्व देश में स्थान प्राप्त करे ।
४. प्रति भारतीय को भारतीय संस्कृति और भारत गौरव को ध्यान गत कर संस्कृत का पाठन अनिवार्य हो। इस हेतु सक्षम प्रयास।
५. कार्यक्रम में संस्कृत विषय की प्रयोगपरता पर विचार किया गया जिसमें डा पीयूष और डा गौरव ने *प्रबन्धन, मनोविज्ञान, व्यक्तित्व विकास, संगणकीय संस्कृत विषयों पर प्रयोगपरक व्यवहार पर पीपीटी प्रस्तुति दी और
चर्चा में उमाशंकर ने कहा कि प्रारम्भिक विद्यालयों में ही संस्कृत का ज्ञान खेलविधि द्वारा दिया जाना चाहिये ।
इसके अतिरिक्त संस्कृत विषय में घटती संख्या पर भी चर्चा करते हुए ७०वर्ष पुराने पाठ्यक्रम में संगतता के अभाव के दोष निवारण पर विचार करने के लिए संस्कृतज्ञों से आग्रह करने के साथ परिचर्चा समाप्त हुई।
सादर
आशुतोष आंगिरस