Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

मैं एक स्त्र ी हाँ,.. पुरुष द्व ारा वकए स्प शग की मांशा पहचान सकती हां , उसके स्प शग से ही अनहोनी की शांका महसूस कर सकती हां… मेरे शीषग को चूमते हु ए बाबा ने, मेरी सिलताओां की जब स् ु वत की, वो स्प शग उनका मेरे प्र वत आश्वासन से पररपूणग था। वो स्प शग मेरा उनके प्र वत कृ तज्ता से सम्पूणग था। वो स्प शग हम दोनोां में आशा का आधार था। वो स्प शग में एक लर्ाव था, एक वनष्ठा थी, सद्भाव था। हााँ ! मैं उस स्प शग का समथगन करती थी। बाबुल का घर छोड चली जब, भाई मेरा रोया था, घर से वबदा कर मुझको,जाने वकतनी रात ना सोया था। कस कर मुझको र् ले लर्ाया , बोला बहना’ सुखी रहना। उस स्प शग से मैं सुरवक्षत थी, उस स्प शग में वकतनी तृन्तप्त थी, उस स्प शग में कोई पाखण्ड ना था, उस स्प शग में वकतनी भन्ति थी। हााँ ! मैं ऐसे स्प शग को हर जन्म की स्व ीकृ वत देती हाँ। मैं अपने पवत का स्प शग भी जानती हां, उस स्प शग में जीवन भर का समपगण हैं, उस स्प शग में अनुरार् है, प्र णय है, उस स्प शग में एक सुभर्ता है, प्र े म का बांधन है, वो मात्र स्प शग नही ां मेरे वलए, वो प्र वतस्पशग है। और इस स्प शग के वलए मैं उत्सुक हाँ, हााँ ! मैं इस स्प शग को मांजूरी देती हाँ। मैं अपने प्र े मी का स्प शग भी जानती हां, वजसमे हो सकता है समपगण ना हो, वजसमे जर् की रु स्व ाइयााँ सहनी पडे, पर उस स्प शग में वात्सल्य है, उस स्प शग में प्र े म रस है, प्र े म प्र सांर् है, कामुकता है, लालसा है, आभार है, और उस स्प शग के वलए मैं व्य ाकु ल हाँ, हााँ ! में इस स्प शग को स्व ीकृ वत देती हाँ। कु छ कां धे रोने के वलए ऐसे भी है, जो ना मेरे बाबा के है, ना भाई के , कु छ अश्रुओां को पोछने वाले हाथ ऐसे भी है, जो ना मेरे पवत के है, ना मेरे प्र े मी के हैं, ऐसे कु छ वमत्र है मेरे, जो की पुरुष है लेवकन, मैं उनके स्प शग से भलीभााँती पररवचत हाँ, उनके स्प शग में एक आदर है, उन स्प शों में सत्कार है, सम्मान है, उन स्प शों का एक दायरा है, उन स्प शों को अपनी हद मालूम है, हााँ ! मैं ऐसे वमत्रोां के स्प शग को रज़ामांदी देती हाँ। पर बात यहााँ ख़त्म नही ां होती ां, कु छ स्प शग ऐसे भी है, वजनको मैंने कभी मांजूरी नही ां दी, कु छ स्प शग हाथ से भी ना थे, पर उनकी कु दृ वष्ट के स्प शग से, मैंने खुद को नग्न पाया, वो स्प शग ना मेरे बाबा का था, ना मेरे भाई का , वो स्प शग ना मेरे स्व ामी का था, ना मेरे अनुरार्ी का, वो स्प शग करने वाला कभी कोई अांजान था, कभी आस पास का, वो स्प शग , स्प शग नही ां था, वो स्प शग मेरे स्त्र ी पैदा होने पर सवाल था, क्य ू ां वक वो स्प शग , स्प शग नही ां, मेरे आन्तस्त्व पर आघात था, वो स्प शग स्त्र ी शरीर पाने पर प्र हार था, वो स्प शग घृवणत कर देने वाला स्प शग था, उस स्प शग से मैं ववचवलत हो जाती हाँ, उस स्प शग से मैं टूट जाती हाँ। वजस स्प शग में वववशता हो, जबरदस्ी हो, वजस स्प शग में लाचारी हो, बांधन हो। जो स्प शग मुझे मेरी अनुमवत , सहमवत , स्व ीकृ वत के वबना वमले, उन स्प शग से मैं खांवडत हो जाती हाँ l याद रखना दोस्ोां … स्त्र ी पुरुष के स्प शग को ही नही ां उसकी नज़रो को भी पहचानती है..