Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

हमने इस ग्रन्थ में स्पष्ट दिखा दिया है कि गीताशास्त्र के अनुसार इस जगत में प्रत्येक मनुष्य का पहला कर्त्तव्य ये ही है कि वह ईश्वर के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करके उसके द्वारा अपनी बुद्धि को जितना हो सके निर्मल और पवित्र कर ले। परन्तु यह गीता का मुख्या विषय नहीं है। युद्ध के आरम्भ में अर्जुन इस कर्त्तव्य मोह में फसा था कि युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म भले ही है परन्तु विपरीत पक्ष में कुलक्षय आदि घोर पातक होने से युद्ध मोक्ष-प्राप्ति रूप आत्म कल्याण का नाश कर डालेगा। उस युद्ध को करना चाहिए अथवा नहीं। अतएवं हमारा यह अभिप्राय है कि उस मोह को दूर करने के लिए शुद्ध वेदांत शास्त्र के आधार पर कर्म – अकरम का और साथ ही मोक्ष के उपायों का भी पूर्ण विवेचन कर इस प्रकार निश्चय किया गया है कि एक तो कर्म कभी छूटते ही नहीं ऑन न ही उन्हें छोड़ना चाहिए। अतयं गीता में उस युक्ति का अर्ताथ ज्ञान मूलक और भक्ति प्रधान कर्मयोग का ही प्रतिपादन किया गया है।