Institute of Applied Sanskrit- Shaastriya Knowledge
(An undertaking of Angiras Clan), Chandigarh

अनुप्रयुक्त संस्कृत- शास्त्रीय ज्ञान संस्थान
(आंगिरस कुल का उपक्रम), चण्डीगढ़

House no - 1605, Sector 44 B, Chandigarh. (UT). Pin- 160044

E-mail - sanskrit2010@gmail.com, Mobile - 9464558667

Collaborators in Academic Karma - Saarswatam ®, Chandigarh(UT), Darshan Yoga Sansthaan, Dalhousie(HP)

Welcome to your श्रीमद्भगवद्गीता के त्रयोदश अध्याय पर आधारित आसक्ति /अनासक्ति-वृत्ति व्यक्तित्व परीक्षण

Name

1. उत्तम पुरुषों के प्रति तिरस्कार बुद्धि नहीं रखता हूँ। (अमानित्वम्)

2. यश प्राप्ति के लिए धार्मिक अनुष्ठान नहीं करता हूँ। (अदम्भित्वम्)

3. मन,वाणी और शरीर से दूसरों को पीडा़ नहीं देता हूँ। (अहिंसा)

4. दूसरों से पीडित होने पर भी विकारग्रस्त नहीं होता हूँ। (क्षान्ति)

5. बाहर-भीतर से शुद्ध हूँ। (शौचं)

6. अन्तःकरण से स्थिर हूँ। (स्थैर्यम्)

7. अपने आपको वश में रखता हूँ। (आत्माविनिग्रहः)

8. जन्म,मृत्यु,जरा,व्याधि दुःख रूप दोषों पर विचार करता हूँ। (दोषानुदर्शनम्)

9. इन्द्रिय-भोगों से विरक्त हूँ। (इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम्)

10. पुत्र-स्त्री,घर आदि में अलिप्त रहता हूँ। (अनभिष्वंग पुत्रदारगृहादिषु)

11. अनिष्ट की प्राप्ति में समाचित्त रहता हूँ। (समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु)

12. एकान्त देश का सेवन करता हूँ। (विविक्तदेशसेवित्वम्)

13. जन समुदाय से अप्रीति करता हूँ। (अरतिर्जनसंसदि)

14 अध्यात्म ज्ञान में नित्य स्थिति रखता हूँ। (अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं)

15. तत्त्वज्ञान के अर्थ का दर्शन करता हूँ। (तत्त्व्ज्ञानार्थदर्शनम्)

16. इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला हूँ। (सर्वेन्द्रियगुणाभासं)

17. वास्तव में सब इन्द्रियों के संग से रहित हूँ। (सर्वेन्द्रियविवर्जितम्)

18. आसक्ति रहित होकर भरण-पोषण करता हूँ। (असक्तं)

19 निर्गुण होने पर भी गुणों को भोगने वाला हूँ। (निर्गुणं)

20. सर्वत्र सम स्थित ईश्वर को एक समान देखता हूँ। (समवस्थितं ईश्वरं)

21. आत्मा को अकर्ता के रूप में देखता हूँ। (आत्मानमकर्तारं)